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* भाषा-टीका-सहितम् * प्रियधाम ( आश्रयभूत ) आपको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥२८॥ नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमो नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः। नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमो नमः सर्वस्मै ते तदिदमिति शर्वाय च नमः॥२९॥ __ हे यिदेव ! ( निर्जन वन-विहरणशील ), नेदिष्ट (अत्यन्त समीप ), दविष्ठ (अत्यन्त दुर), क्षोदिष्ठ (अति सूक्ष्म), महिष्ठ ( महान् ), वर्षिष्ठ ( अत्यन्त वृद्ध ), यविष्ठ ( अतियुवा ),सर्व स्वरूप और अनिर्वचनीय आपको नमस्कार है ।।२९।। बहुलरजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नमः प्रबलतमसे तत्संहारे हराय नमो नमः । जनसुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नमः प्रमहासे पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नमः ॥३०॥ __ हे शिवजी ! जगत् की उत्पत्ति के लिए परम रजोगुण धारण किये भव ( ब्रह्मा) रूप आपको बार-बार नमस्कार है और उस जगत् के संहार करने में तमोगुण को धारण करनेवाले हर (स्द्र )रूप आपके लिए पुनः-पुनः नमस्कार है, जगत् के सुख के लिए सत्त्वगुण को धारण करने वाले मृड (विष्णु)
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