Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * भाषा-टीका सहितम् * यद्यपि आपका चरित्र अमंगल है तथापि स्मरण करने वालों को हे वरद, आप परम मंगलरूप हैं ।। २४ ॥ मनः प्रत्यक्चित्ते सविधमवधायात्तमरुतः प्रहृष्यद्रोमाणः प्रमदसलिलोत्सङ्गितदृशः । यदालोक्यालादं हृद इव निमज्यामृतमये दधत्यन्तस्तत्त्वं किमपि यमिनस्तत्किल भवान् ॥२५॥ हे वरद, जिस प्रकार अमृतमय सरोवर में अवगाहन से (स्नान करने से) प्राणीमात्र तापत्रय से मुक्त हो जाते हैं, उसी प्रकार इन्द्रियों से पृथक् करके मन को स्थिर कर विधिपूर्वक प्राणायाम से पुलकित तथा आनन्दाश्र से युक्त योगीजन ज्ञानदृष्टि से जिसे देखकर परमानन्द का अनुभव करते हैं वह आप ही हैं ॥ २५॥ त्वमकस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवहस्त्वमापस्त्वं व्योम त्वमुधरणिरात्मा त्वमिति च । परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रतु गिरम न विद्मस्तत्तत्वं वयमिह तु यत्त्वं न भवसि ॥२६॥ _हे वरद, आपके विषयमें ज्ञानीजनों को यह धारण है कि "क्षिति-हुतवह-क्षेत्रज्ञाम्भ-प्रभंजनश्चन्द्रमस्तपनविदित्य टो मूर्तिनमो भवं विभ्रते' इस श्रुतिके अनुसार सूर्य,चन्दमा,वायु,अग्नि For Private and Personal Use Only

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