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* शिवमहिम्नस्तोत्रम् *
से मृगीरूप धारण करने वाली अपनी कन्या में आसक्त देख आपका उनके पीछे छोड़ा गया बाण आज भी नक्षत्र रूपमें मृगशिरा (ब्रह्मा) के पीछे वर्तमान है || २२ ॥ स्वलावण्याशंसा धृतधनुषमह्नाय तृणवत् पुरः प्लुष्ट दृष्ट्वा पुरमथन पुष्पायुधमपि । यदि स्त्रैणं देवो यमनिरतदेहार्धघटनाद् दवैति त्वामद्धा बत वरद मुग्धा युवतयः ||२३||
हे यम नियम वाले त्रिपुरहर, आपकी कृपा से आपका अर्धस्थान प्राप्त करने वाली पार्वती, अपने सौन्दर्यरूपी धनुषको धारण करने वाले कामदेव को जला हुआ देखकर भी यदि आपको अपने अधीन समझें तो ठीक ही है, क्योंकि प्रायः युवतियाँ ज्ञान हीन होती हैं ॥ २३ ॥ स्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर ! पिशाचाः सहचराश्चिताभस्मालेपः स्रगपि नृकरोटीपरिकरः । अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलम् तथापि स्मर्तॄणां वरद ! परमं मङ्गलमसि ॥२४॥
हे स्मरहर आपका स्मशान में क्रीडा करना, भूत-प्रेतपिशाचादि का साथ रखना, शरीर में चिता के भस्म का लेपन करना तथा नर मुण्डोंका माला पहिनना आदि बीभत्सकर्मों से
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