Book Title: Shiv Mahimna Stotram
Author(s): Thakurprasad Pustak Bhandar
Publisher: Thakurprasad Pustak Bhandar

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * भाषा-टीका सहितम् के मुहुधौदीस्थ्यं यात्यनिभृतजटाताडिततटा जगदक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता ॥१६॥ हे ईश ! भाप जगत् की रक्षा के लिए राक्षसों को मोहित करके नाश के लिए नृत्य करते हो, तभी संसार का आपके ताण्डव से दुःख दूर होता है। क्योंकि आपके चरणोंके आघातसे पृथ्वी धंसने लगती है, विशाल बाहुओं के संघर्ष से नक्षत्रमय आकाश पीड़ित हो जाता है तथा आपकी चचल जटाओं से ताड़ित हा स्वर्ग लोक भी कम्पायमान हो जाता है । ठीक ही है, उपकार भी किसी के लिए अहितकारक हो जाता है ॥ १६ ॥ वियव्यापी तारागणगृणितफेनोद्गमरुचिः प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदृष्टः शिरसि ते । जगद्द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमित्यनेनेवोन्नेयं धृतमहिमदिव्यं तव वपुः ॥१७॥ ___ हे ईश ! तारा गणों की कान्ति से अत्यन्त शोभायमान आकाश में व्याप्त तथा भूलोक को चारों ओर से घेरकर जम्बूद्वीप बनानेवाला गङ्गा का जल-प्रवाह आपके जटाकलाप में बूँद से भी लघु देखा जाता है। इतने से ही आपके दिव्य तथा श्रेष्ठ शरीर की कल्पना की जा सकती है ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only

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