Book Title: Shatpahud Granth Author(s): Kundakundacharya Publisher: Babu Surajbhan Vakil View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ प्रस्तावना॥ जैन जाति में ऐसा कोई मनुष्य न होगा जो श्रीकुन्दकुन्दस्वामी का पवित्र नाम न जानता हो क्योंकि शास्त्र सभा में प्रथम ही जो मङ्गलाचरण किया जाता है उस में श्रीकुन्दकुन्दस्वामी का नाम अवश्य आता है । श्रीकुन्दकुन्दस्वामी के रचे हुए अनेक पाहुड़ ग्रन्थ हैं जिन में अष्ट पाहुड़ और षट पाहुड़ अधिक प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन की भाषा टीका हो चुकी है । इस समय हम षट पाहुड़ ही प्रकाश करते हैं और दो पाहुड़ अलहदा प्रकाश करने का इरादा रखते हैं जो षट पाहुड़ के साथ मिला देने से अष्ट पाहुड़ हो जाते हैं प्राकृत और संस्कृत के एक जैन विद्वान द्वारा प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद कराया गया है, अनुबाद क महाशय नाम के भूखे नहीं हैं बरण जैन धर्म के प्रकाशित होने के अभिलाषी हैं इस कारण उन्हों ने अपना नाम छपाना जरूरी नहीं समझा है-ऐसे बिद्वान की सहायता के विदून प्राकृत गाथाओं का शुद्ध होना तो बहुत ही कठिन था क्योंकि मीदरों में जो ग्रन्थ मिलते हैं उनमें प्राकृत वा संस्कृत मूल श्लोक तो अत्यंत ही अशुद्ध होते हैं-प्राकृत भाषा का अभाव होजाने के कारण संस्कृत छाया का साथ मे लगादेना अति लाभकारी समझा गया है-आशा है कि पाठकगण अनुवादक के इस श्रमकी कदर करेंगे। सूरजभानु वकील देवबन्द For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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