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प्राककथन षट्खंडागम के प्रस्तुत बारहवे भाग में वेदनाखंड समाप्त हो जाता है। अब श्रीधवल के प्रकाशन में वर्गणा खंद और चूलिका ही शेष रह जाते हैं जिन्हें आगामी चार भागों में पूरा करने की आशा है।
इस भाग की तैयारी भी पूर्ण पद्धति अनुसार अमरावती में ही हुई। किन्तु समय की बचत की दृष्टि से :सके मुद्रण का प्रबन्ध बनारस में किया गया, और वहाँ इसके प्रूफ संशोधनादि का कार्य पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री द्वारा हुआ है जिसके लिये मै उनका विशेष कृतज्ञ हूं। जिन प्रतियों का पाठ संशोधन के लिये उपयोग किया गया है उनके अधिकारियों का मैं आभार मानता हूँ।
सहारनपुर निवासी श्रीरतनचंदजी मुख्तार का मैं विशेष रूप से अनुग्रह मानता हूँ। वे बड़ी लगन और तन्मयता के साथ इन ग्रन्थों का स्वाध्याय करते हैं और शुद्धिपत्र बनाकर भेजते हैं। इस भाग के लिये भी उन्होंने अपना शुद्धिपत्र भेजने की कृपा की, जिसका यहां समुचित उपयोग किया गया है।
नागपुर
हीरालाल जैन
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