Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ जह रोगासयसमणं विसोसणविरेअणोसहविहीहि / तह कम्मामयसमणं झाणाणसणाइजोगेहिं // 1414 // जह चिरसंचियमिंधणमनलो पवणसहिओ धुवं डहइ / तह कमिंधणममियं खणेण झाणानलो डहइ // 1415 // जह वा घणसंघाया खणेण पवणाहया विभिज्जंति / झाणपवणावहूया तह कम्मघणा विलिज्जंति // 1416 // न कसायसमुत्थेहिं वाहिज्जइ माणसेहिं दुक्खेहिं / ईसाविसायसोगाइएहिं झाणोवगयचित्तो // 1417 // सीआइवाइएहिं सारीरेसु बहुप्पगारेहिं / झाणसुनिच्चलचित्तो न वाहिज्जइ निज्जरापेही // 1418 // इय सव्वगुणठाणं दिट्ठादिट्ठसुहसाहणं झाणं / सुपसत्थं सद्धेअं ने झेअं व निच्चं पि // 1419 // इइ पुव्वुत्तचउक्के झाणेसु पढमदुगि खु मिच्छत्तं / पुरिमदुगे सम्मत्तं तयपुव्वं सव्वणुट्ठाणं . // 1420 // मिच्छत्तं तत्थ दुहा-णाइसपज्जंतमणाइयमपज्जं / भव्वाणमभव्वाणं णेयं खु वि पज्जयाईणं // 1421 // भिन्नाण भिन्नगंठीण पुणो भवे जं च साइपज्जंतं / अट्ठविहं मिच्छत्तं पण्णत्तं खीणदंसीहिं // 1422 // एगंतिय 1 संसइयं 2 वेणइयं 3 पुव्ववुग्गहं 4 चेव / विवरीयरुइ 5 निसग्गं 6 संमोहं 7 मूढदिट्ठिभवं 8 // 1423 // * क्षणिकोऽक्षणिको जीवः सर्वथा सगुणोऽगुणः / इत्यादिभाषमाणस्य तदैकान्तिकमुच्यते // 1424 // सर्वज्ञेन विरागेण जीवाजीवादिभाषितं / तथ्यं न वेति संकल्पैदृष्टिः सांशयिकी मता 1425 // .253

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310