Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 274
________________ जिणधम्मं बहु मन्नइ भावायरियं णिसेवए निययं / आसेवइ जमनियमाई गिण्हइ सुहजोयबीयं च // 1438 // न धरेइ वयरदोसं “दव्वाइ अभिग्गहाइ गिण्हेइ / नियपरसत्थसमग्गं धारेइ मज्झत्थभावेण // 1439 / / तिविहअवंचकजोग-किरियाफलमाईओसहाईहिं / दाणविणयाइजुत्तो नाणगुणवुड्डिकरणरओ // 1440 / / पुव्वाइसुयमहिज्जइ गंथं वियारं कहेइ बंधेइ / ..... केवलमभव्वमिच्छो पुव्वं न सुणेइ नो गंथं // 1441 // गुणिसंगजोगसुकहाकहापरो उचियकिच्चतप्परओ। किरियाई अणुव्विग्गो जिग्गासा. तच्चभावाणं // 1442 // धारियभवसंतासो भवपासो मन्नइ व्व पाससमो / सवणसमीहा सच्चा उज्जुमइ धम्मनिरविग्घो // 1443 // भवपासमोयणत्थं सव्वं कटुं करेइ धणदाणं / . गुरुभत्तिखंतिजुत्तो अदोहभावेण झाणबीयधरो // 1444 // दीणो माई मच्छरठाणी किवणो भवाहिनंदी य / माणीअहलारंभी अवेज्जपयदुट्ठदोसजुओ // 1445 // अत्तुकरिसं अंतंति न धरइ लोगुत्तरम्मि पक्खवहो / पच्छाणुतावनिरओ साणुक्कोसो य लोयगुणो // 1446 // इच्चाइणेगपवयणगुणविहिनिरओ नराण तल्लिच्छो / वेज्जपयलिंगजुत्तो विवरिओ वज्जपयअट्ठो // 1447 // इच्चाइच्चयणमईओ निच्छयववहारपक्खवाओ य / चरिमावत्ते य चरिमं करणं कारेइ सो दिट्ठी // 1448 // घणरागद्दोसगंठि भिदइ पावेइ तच्चसम्मत्तं / पच्चुब्भडपावपरिभवाणुबंधी किच्चाओ विरमेइ // 1449 // 295

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