Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 288
________________ // 1607 // // 1608 // तेसिं निराणुबंधी रागद्दोसा हविज्ज निरवज्जा / सुहकयतुट्ठी पुट्ठी पुणरिसयरस्स संसुद्धी जुग्गाणं भव्वाणं संविग्गाणं विसुद्धसम्माणं / / संविग्गपक्खियाणं दायव् सव्वहा तेसिं तग्गुणविपक्खियाणं तप्पुरओ भासमाणमिणमं खु / पव्वयणगुणनीसंदं हुज्जा पच्छित्तमित्थत्तं णिच्चं पसंतचित्ता पसंतवाहियगुणेहिं मज्झत्था / नियकुग्गहपडिकूला पवयणमग्गम्मि अणुकूला इच्चाइगुणसमेया भवविरह पाविऊण परमपयं / पत्ता अणंतजीवा तेसिमणुमोयणा मज्झ // 1609 // // 1610 // // 1611 // // 1 // ॥सर्वज्ञसिद्धिः // लक्ष्मीभृद् वीतरागः क्षतमतिरखिलार्थज्ञताऽऽश्लिष्टमूर्तिदेवेन्द्रार्योऽप्रसादी परमगुणमहारत्नदोऽकिञ्चनेशः / तच्चातच्चेतिवक्ता नवितथवचनो योगिनां भावगर्भ, ध्येयोऽनङ्गश्च सिद्धेर्जयति चिरगतो मार्गदेशी जिनेन्द्रः नास्त्येवाऽयं महामोहात्, केचिदेवं प्रचक्षते / कृपया तत्प्रबोधाय, ततः सन्याय उच्यते / सर्वज्ञाप्रतिपत्तिर्य-न्मोहः सामान्यतोऽपि हि। नास्त्येवाभिनिवेशस्तु, महामोहः सतां मतः अस्माच्च दूरे कल्याणं, सुलभा दुःखसम्पदः / नाज्ञानतो रिपुः कश्चि-दत एवोदितं बुधैः महामोहाभिभूताना-मित्यनर्थो महान् यतः / अतस्तत्त्वविदां तेषु, कृपाऽवश्यं प्रवर्तते // 2 // // 3 // // 4 // 270

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