Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 6 // ... // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // श्रुत्वैतं चेह सन्न्यायं, तथा क्लिष्टस्य कर्मणः / क्षयोपशमभावेन, प्रबोधोऽप्युपपद्यते . तदभावेऽपि तद्दोषात्, सफलोऽयं परिश्रमः / कृपाभावत एवेह, तथोपायप्रवृत्तितः श्रोतृणामप्रबोधेऽपि, यन्मुनीन्द्ररुदाहृतम् / आख्यातॄणां फलं धर्म-देशनायां विधानतः अलमत्र प्रसङ्गेन, प्रकृतं प्रस्तुमोऽधुना। पूर्वपक्षस्तु सन्न्याय-स्तत्रातः किञ्चिदुच्यते प्रत्यक्षादिप्रमाणगो(णैर्गो)-चरातिक्रान्तभावतः / असाध्वी किल सर्वज्ञ-कल्पनाऽतिप्रसङ्गतः प्रत्यक्षेण प्रमाणेन, सर्वज्ञो नैव गृह्यते / लिङ्गमप्यविनाभावि, तेन किञ्चिन्न दृश्यते नचाऽऽगमेन यदसौ, विध्यादिप्रतिपादकः / अप्रत्यक्षत्वतो नैवो-पमानेनापि गम्यते नार्थापत्त्या हि सर्वोऽर्थ-स्तं विनाऽप्युपपद्यते / प्रमाणपञ्चकावृत्ते-स्तत्राभावस्य मानता रागादिप्रक्षयाच्चास्य, सर्वज्ञत्वमिहेष्यते / तेषां चात्मस्वभावत्वात्, प्रक्षयो नोपपद्यते अथ नात्मस्वभावास्ते, सर्वज्ञः सर्व एव हि / अरागादिस्वभावत्वा-न वा कश्चित् कदाचन किञ्च-जात्यादियुक्तत्वाद् वक्ताऽसौ गीयते परैः / ततः कथं नु सर्वज्ञो?, यथोक्तं न्यायवादिना असाविति न सर्वज्ञो, वक्तृत्वाद्देवदत्तवत्। .. यं यं सर्वज्ञमित्याहु-स्तं तमेतेन वारयेत् 280 // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // . // 17 //

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