Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 02
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ आसवदारावाए तह संसारासुहाणुभावं च / भवसंताणमणंतं वत्थूणं विपरिणामं च // 1402 // . सुक्काए लेसाए दो तइयं परमसुक्कलेसाए / थिरियाजियसेलेसं लेसाईयं परमसुक्कं // 1403 // अवहास-मोहविवेग-वुस्सग्गा तस्स हुंति लिंगाई / लिंगिज्जइ जेहिं मुणी सुक्कझाणोवगयचित्तो // 1404 // चालिज्जइ बीहेइ व धीरो न परीसहोवसग्गेहिं / सुहुमेसु न संमुज्झइ भावेसु न देवमायासु // 1405 // देहे विचित्तं. पिच्छइ अप्पाणं तह य सव्वसंजोए / ... देहोवहिवुस्सग्गं निस्संगो सव्वहा कुणइ // 1406 // हुंति सुभासुभसंवर-विणिज्जरामरसुहाइ विउलाई / झाणवरस्स फलाई सुहाणुबंधाणि धम्मस्स // 1407. // ते अविसेसेण सुहा-सवादओणुत्तरामरसुहं च / दुण्हं सुक्काण फलं परिनिव्वाणं परित्ताणं // 1408 // आसवदारा संसारहेयवो जं न धम्मसुक्केसु / . संसारकारणाई ततो धुवं धम्मसुक्काइं // 1409 // संवरविणिज्जराओ मुक्खस्स पहो तवो पहो तासि / झाणं च पहाणंगं तवस्स तो मुक्खहेऊ य // 1410 / / अंबरलोहमहीणं कमसो जह मलकलंकपंकाणं / सुब्भावणघणसोसे साहति जलानलाइच्चा // 1411 // . तह सुझाई समत्थी जीवंबरलोहमेइणिगयाणं / झाणजलानलसूरा कम्ममलकलंकपंकाणं // 1412 // तावो सोसो भेओ जोगाणं झाणओ जहा निययं / / तह तावसोसभेआ कम्मस्स वि झाइणो नियमा // 1413 // 22

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