Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 02
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (४-६०४ ) दीक्षा स्मृति दिन शताब्दी वर्ष में सादर समर्पणम् श्री महावीर प्रभु के शासन की अजोड आराधना, प्रभावना और सुरक्षा द्वारा बीसवी - इक्कीसवी सदी के जैन इतिहास को जाज्वल्यमान करते दीक्षायुगप्रवर्तक, व्याख्यान वाचस्पति, | जैन शासन शिरताज, तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा अनेक बार प्रवचनो तथा वाचनाओं में फरमाते थे कि, जैन शासन के अद्भुत आगम निधि का परमार्थ प्राप्त करना हो, वैसे प्रत्येक पुण्यात्मा-महात्मा को सूरिपुरंदर पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजा * कलिकालसर्वज्ञ पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा और * न्यायाचार्य न्यायविशारद पूज्यपाद महामहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी गणिवर्य जैसे शासन मर्मज्ञ, कलिकाल में भी पूर्वधरों का स्मरण करायें ऐसी श्रुतसंपत्ति के धारक महापुरुषो के रचे हुए ग्रंथो का गुरु आज्ञा - निश्रा में सुंदर अभ्यास करना चाहिए । प्राकृतसंस्कृत भाषा से अन्जान ऐसे मुमुक्षु भी इस ज्ञान विरासत से वंचित न रहे और मोक्षमार्ग का सुनिश्चित ज्ञान उनको भी मिल सके इसलिए ऐसे प्रकरणादि ग्रंथो का भावानुवाद भी होना चाहिए | पूज्यपाद श्रीजी की यह आर्षवचनिका मेरे हृदय पट के उपर अंकित हुई और "शुभे यथाशक्ति यतनीयम्” न्यायानुसार मैंने उनकी श्रीमद् की कृपा के बल से यह अनुवाद तैयार करने का प्रयास किया है । ग्रंथ परिसमाप्ति के आनंद को परमानंद में परिवर्तित करने के लिए आज उनके - श्रीमद् के ही शास्त्रसंपूत करकमल में समर्पण करके धन्यता का अनुभव करता हुँ । Jain Education International - For Personal & Private Use Only चरणरज संयमकीर्ति विजय www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 756