Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 01
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 11
________________ 8/B आज लगभग १४०० संयमी साधनारत हैं। अन्य समुदाय, गच्छ व संप्रदायों में दीक्षाप्रवृत्ति के वेग में भी वे श्रीमद् असामान्य कारणरूप हैं। यह किसी भी निष्पक्षपाती को कहने में गुरेज नहीं होगा। पूज्यपादश्रीजी के दीक्षास्वीकार की क्षण वि. सं. २०६८ की पोष सुदी त्रियोदशी को 'शताब्दी' में मंगलप्रवेश कर रही है और पूरे वर्ष के दौरान इस उपलक्ष्य में दीक्षाधर्म की प्रभावना के विविध अनुष्ठान आयोजित किए जा रहे हैं। पालीताणा में सूरिरामचंद्र' के साम्राज्यवर्ती पूज्य गच्छस्थविर पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय ललितशेखरसूरीश्वरजी महाराजा, वात्सल्यनिधि पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय महाबलसूरीश्वरजी महाराजा, गच्छाधिपति पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय पुण्यपालसूरीश्वरजी महाराजा, प्रवचनप्रभावक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा आदि दशाधिक सूरिवर, पदस्थ, शताधिक मुनिवर तथा पंचशताधिक श्रमणीवरों की निश्रा-उपस्थिति में पंचदिवसीय महोत्सव के आयोजन के साथ आरम्भित 'दीक्षाशताब्दी-महोत्सव' देशभर में अनेक स्थलों पर भावपूर्वक मनाया जा रहा है। पूज्यश्री के साथ संलग्न स्मृतिस्थान-तीर्थों में भी विविध आयोजन किए गए हैं। समुदाय के अन्य सूरिवर आदि की निश्रा-उपस्थिति में भी राजनगर, सूरत, मुंबई आदि स्थलों पर प्रभावक आयोजन किए गए हैं। इन सभी आयोजनों के सिरमौर व समापन स्वरूप पूज्यपादश्रीजी के दीक्षास्थल श्री गंधारतीर्थ में अधिक से अधिक संख्या में चतुर्विध श्रीसंघ को आमंत्रित कर दिगदिगंत में गुंजायमान होनेवाला दीक्षादुंदुभि का पुण्यघोष करने की गुरुभक्तों व समिति की भावना है। दीक्षाशताब्दीवर्ष में जिनभक्ति, गुरुभक्ति, संघ-शासनभक्ति के विविध अनुष्ठान आयोजित किए जाएंगे । वैसे ही अधिक से अधिक संख्या में मुमुक्षुओं, महात्माओं के दीक्षा महोत्सव भी आयोजित किए जाएंगे। साथ ही ज्ञानसुरक्षावृद्धि, अनुकंपा एवं जीवदयादि के संगीन कार्य करके पूज्यपादश्रीजी के आज्ञासाम्राज्य को ससम्मान श्रद्धांजलि समर्पित की जाएगी। इस बृहद् योजना के अंतर्गत ही प्राचीन व अर्वाचीन श्रुतप्रकाशन का सुंदर व सुदृढ़ कार्य शुरू किया गया है। सूरिरामचंद्रसाम्राज्य के वर्तमानगच्छाधिपति प्रवचनप्रदीप पूज्यपाद् आचार्यदेव श्रीमद् विजय पुण्यपालसूरीश्वरजी महाराजा के आज्ञाशीर्वाद प्राप्त कर प्रवचनप्रभावक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा के शास्त्रीय मार्गदर्शनानुसार विविध श्रृतरत्नों का प्रकाशन 'शासनसिरताज सरिरामचंद्र दीक्षाशताब्दी ग्रंथमाला' के उपक्रम से निर्धारित किया गया है। इसके पंचम-पुष्प स्वरूप “षड्दर्शनसमुच्चय-हिन्दी भावानुवाद-भाग-१" ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए अतीव आनंद अनुभव कर रहे हैं। इस पुस्तक का संकलन-संपादन कार्य विद्वद्वर्य पू. मुनिराज श्री संयमकीर्तिविजयजी महाराजने करके महान उपकार किया है, तो सन्मार्ग प्रकाशन, अहमदाबाद ने भी अथक मेहनत से मुद्रण-प्रकाशन व्यवस्था में पूरा सहयोग दिया है, जिसके लिए उन सभी के भी उपकृत हैं। सभी कोई इस पुस्तक के पठन-पाठनादि से ज्ञानावरणीयादि कर्मों का क्षयोपशम पाकर मुक्तिमार्ग में आगे बढ़कर आत्मश्रेयः प्राप्त करें, यही हार्दिक-भावना है। वि. सं. २०६८, माघ सुदी १३ शासनसिरताज सूरिरामचंद्र दीक्षाशताब्दी समिति रविवार दिनांक ५-२-२०१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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