Book Title: Shaddarshan Samucchay
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan

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Page 11
________________ दर्शनों का संक्षिप्त परिचय वैदिक-दर्शन १. मीमांसा-दर्शन : - महर्षि जैमिनी मीमांसा-दर्शन के सूत्रप्रणेता थे । मीमांसा को 'पूर्वमीमांसा' भी कहते हैं । वैदिक कर्मकाण्ड का युक्तिपूर्वक प्रतिपादन करना इसका मुख्य उद्देश्य है । इस कर्मकाण्ड का आधार है वेद । मीमांसा के अनुसार वेद मनुष्य-रचित नहीं, अपितु अपौरुषेय तथा नित्य हैं । इसलिए वेद पुरुषकृत दोषों से रहित हैं । वेदों का प्रकाश ऋषियों द्वारा हुआ है । वेद की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये मीमांसा-दर्शन में प्रमाणों पर सविस्तर विचार हुआ है। ___ इस दर्शन में यह दिखलाने का प्रयत्न किया गया है कि सभी ज्ञान स्वतः प्रमाण हैं । पर्याप्त सामग्री रहने से ही ज्ञान की उत्पत्ति होती है । इन्द्रियों के निर्दोष होने से, वस्तुओं के सन्निकट रहने से, तथा अन्य सहकारी कारणों के उपस्थित रहने पर ही प्रत्यक्ष ज्ञान हो पाता है । पर्याप्त सामग्री रहने से अनुमान भी हो जाता है । जब हम भूगोल की कोई पुस्तक पढ़ते हैं तो हमें उस समय शब्द-प्रमाण के द्वारा परोक्ष देशों का भी ज्ञान हो जाता है। इन प्रमाणों द्वारा अर्थात् प्रत्यक्ष, अनुमान तथा शब्द के द्वारा जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है उसकी सत्यता हम निर्विवाद मान लेते हैं, इसके लिये हम किसी अन्य प्रमाण की अपेक्षा नहीं करते । यदि ज्ञान में कोई सन्देह रहे तो उसे ज्ञान ही नहीं कहा जा सकता, क्योंकि

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