Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar

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Page 8
________________ यह बहुत सुन्दर हुआ कि परमाराध्य आचार्य श्री की प्रेरणा और मुनि श्री नथमलजी के मार्गदर्शन से एक इस कोटि के स्मृति-ग्रन्य के प्रकाशन का 'समिति' द्वारा निश्चय किया गया, जो बाचार्य श्री कालूगणी के विद्या-जीवन से अनन्यरूपेण सम्बद्ध व्याकरण आदि विषयो पर आधृत हो। उसका साकार रूप प्रस्तुत ग्रन्थ है। हम इसे आचार्य प्रवर तथा मुनि श्री नथमल जी के आशीर्वाद का ही फल मानते है कि इस कोटि के स्मृति-ग्रथ का दुसाध्य कार्य इतने अल्प समय मे सपन्न हो सका है। इसके लिए हम उनके अत्यन्त आभारी है। ___इस ग्रन्थ के सम्पादन मे प्राच्य विद्या के अध्येता मुनि श्री दुलह राज जी, प्राकृत जन शोध सस्थान, वैशाली (विहार) के भूतपूर्व प्राध्यापक डॉ० छानलाल जी शास्त्री तथा उदयपुर विश्वविद्यालय के प्राकृत के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रेम सुमन जी जैन ने बडी लगन के साथ श्रम किया है। इसके लिए समिति उनका हृदय से आभार मानती है। ये तीनो ही विद्वान् सस्कृत-प्राकृत क्षेत्र के सुप्रसिद्ध सेवी है। इनके मपर्क व प्रयास का ही यह परिणाम है कि बहुत कम समय मे इतनी उपादेय सामग्री या विद्वानो के समक्ष उपस्थित की जा सका है। ___ सम्पादक मंडल के आदरास्पद मुनिजनो ए१ सम्माननीय सदस्यो के भी हम आभारी हैं, जिनका सवल व मार्गदर्शन हमे सहज प्राप्त रहा है । स्मृति अन्य के लिए जिन विद्वानो ने अपने शोधपूर्ण निवन्ध प्रेपित कर इसे समृद्ध बनाया है, उनके प्रति हम हृदय मे कृतज्ञ है। साहित्य प्रकाशन सम्बन्धी कार्य के सम्यक निर्वाह हेतु समारोह समिति के अन्तर्गत एक साहित्य समिति परिगठित की गई थी। साहित्य समिति के सभी सदस्यो का मुझे हादिक सहयोग प्राप्त रहा, जिसके लिए मै उनका हृदय से आभारी है। समिति की साहित्यिक योजना तथा कार्यों में हमारे सम्माननीय सदस्य, जन विश्व भारती, लाडनू के कुलपति श्री श्रीचद जी रामपुरिया का प्रारम्भ से लेकर प्रकाशन की अन्तिम वेला तक जो सहयोग और श्रम प्राप्त हुआ, वही आज फलीभूत होकर हमारी इस योजना को सफल बना पाया है। आदरणीय श्री रामपुरिया जी की सेवाओ के लिए सदा-सदा हमारी समिति कृतज्ञ रहेगी। प्रमुख समाज सेवी श्री मानिकचन्द जी सेठिया, श्री सतोषचन्द जी बरडिया एव श्री गोपीचन्द जी चोपडा का समय-समय पर जो सत्परामर्श एव मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा, उसके लिए हम उनके भी हृदय से आभारी हैं। ___ समारोह समिति के सम्माननीय अध्यक्ष श्रीमान् मोतीलालजी कोठारी, उपाध्यक्ष श्रीमान् भीखमचदजी वंद, जिनके महत्वपूर्ण, उपयोगी सुझाव मुझे परावर मिलते रहे, का में अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। निरन्तर यन्तवत् कार्यरत श्रीमान्

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