Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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अथ श्री संघपट्टका -
आ कालमां नगवतना विरहथी' इत्यादि ग्रंथने श्रारंजी एमने विषे केष करवो एज श्रेय ले. त्यां सुधी ग्रंथ को हतो तेनुंपण खेमन थयुं एम जाणवू. गवतनो विरह थयो तो पण साचा मार्गने जाणवाना नपाय घणाज ते मोटा पुरुषना कहेला कह्या ले. तेणे करीने साचा मार्गना खप करनार पुरुषोने साचा मार्गनुं ज्ञान सिक थाय ने अने जे मार्गमां घणा जननी प्रवृत्ति थ, तेज साचो मार्ग . ए प्रकारे मोक्ष मार्गनो अंगीकार करोए तो लौकिक धर्मनी आपत्ति एटले प्राप्ति थाय. केम जे लौकिक मार्गने विषे लोकनी प्रवृत्ति अति घणीने ए हेतु माटे, 'महाजन जेमार्गे चाले ते मार्ग इत्यादिजे लौकिकन्याय तेणे करीने जे प्रवृत्ति तेनुंजे तमारेप्रमाणपj प्रतिपादन करवू ते तो नि:केवल आत्म क्लेशज डे, पण एर्नु प्रमापपणुं प्रतिपादन थाय एम नथी.
टीकाः-तथाहि महाजन इत्यत्र वृक्षप्रामाणिकपुरुष.. . वचन श्चेन्महच्छब्दस्तदा न विप्रतिपद्यामहे ॥ वृक्षप्रामाणिक ,
गणधरादिपुरुषशाईलपदकुएणस्यैव पथोऽस्मानिरपि मोक्षमार्ग त्वेनान्युपगमात् ॥ बह्वर्थश्चेत्तर्हि बहुजणपमिवत्तीत्यादिना खो- कोत्तरवचसैवास्य न्यायस्य बाधितत्वेनाऽनवकाशात् ॥ ...'
Ravi
अर्थः--'महाजन' ए वाक्यमा वृक्ष प्रामाणिक पुरुषने कहेनार जो महत् शब्द होय तो तेनो अंगीकार करीए बीए. केमजे, वृक्ष प्रामाणिक जे गणधरादि उत्तम पुरुष तेनोज मार्ग श्रमोःमो. क्षमार्गपणे अंगीकार करीए बीए ए हेतु माटे, एटले. “महाजनो येन ए वाक्यमां महाजन ए शब्दे करीने गणधर ए प्रकारे अर्थ

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