Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 666
________________ . अब श्री संघपट्टका लिंगधारि जो पति न होय तो आ कालमां कोई जगाये सिहांतमा क्षेत्रां लक्षण कह्यांबे, तेवा लक्षण वाळा यति नथीज केमके तेजा सकण वाळा पति कोइ जगौए देखाता नथो, ए हेतु माटे. वळी ज्ञान दर्शने करीने जे जगवतनुं तीर्थ व डे, एम जापता शिष्य प्रत्ये लिंगधारी विना शास्त्र लक्षणथी मळता आवता एवा सुविहित यतियो बे, ए प्रकारनो पक्षांतरने जणवनार तथा शब्द मध्ये मूकी वर्तमान काळमां उचित एवा यति लक्षणवमे सहित सुविहित यति डे एम प्रतिपादन करता सता कहे जे. तथाच ॥ मलकाव्यम्:-- न सावद्याम्नाया न, बकुश कुशीलोचित यति। क्रिया मुक्ता युक्ता, न मदममताजीवन नयैः॥ न संक्वेशावेशा, न कदनिनिवेशा न कपट । प्रिया ये तेद्यापि स्युरिद, यतयः सूत्ररतयः ॥३६॥ टीका:-तथेति यथा संप्रति नयांसो लिंगिनः संति तथा तेन प्रकारेण विरलाःसुविहिता अपीत्येतदेवाह ॥ तेद्यापि स्युरिह यतय इति संबंधः ॥आम्नायो गुरुशिष्यप्रतिशिष्यादिक्रमेण संप्रदायः सावद्यः प्राग्वर्णितौदेशिकनोजनाद्युपत्नोगादेः सपाप आम्नायो येषांते तथा नातेषां निषेधः। अधुनातनरुढ्यौदेशिकशोजनचेखवासादिना सावद्मसंप्रदायवंत्रो येन जति तथा ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704