Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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(६४६)
* अथ श्री संघपट्टका
पत्तगधुयण वियारा मिल मावस्सयाइयेत्यादि । दश विध चक्रवालादि सामाचा चारीरिण इत्यर्थः॥
अर्थः-तेमने योग्य एवी जे मुनिनी क्रिया पमिलेहण प्रमार्ज आदि साधु समाचारी तेणे रहित एवा जे नथी एटले नित्ये साधु समाचारीये युक्त जे. साधुने नित्य करवा योग्य एवी क्रिया जे प. मिलेदण इत्यादि. ..
तीर्थप्रयायुक्तयतिगवेषालातकपरिहारेण यह
टीकाः-अत्रच पुलाकनिग्रंथस्नातकपरिहारेण यद्दकुश कुशीलोचितक्रियायुक्तयतिगवेषणं ततैरेव सर्वतीर्थकराणां तीर्थप्रवृत्तेः सब जिणाणं जह्मा, बकुशकुशीलेहिं वट्टए तित्थ, मितिवचनात् ॥ तथा न युक्ता न स्पृष्टा मदो जात्यां दिनिरात्मो, स्कर्षप्रत्ययः ममता गृहस्थादिषु प्रतिबंधो ममैते योगदेमं वहंति ततो यद्यमीषां क्वाप्यनिष्टं न संपद्यते इत्यादि स्नेहेन तवसुख दुःखान्यां यतेरपि तत्तेति यावत् ॥
- अर्थः-श्रा जगाये पुलाक निर्मथ तथा स्नातक ए सर्वेनों त्याग करी जे बकुश कुशीलने योग्य एवी जे क्रिया तेणे युक्त एवा यति खोळी काढया तेनुं कारण ए जे जे, बकुश कुशीलवमेज सर्व तीर्थकरना तीर्थनी प्रवृत्ति थाय बे, ए हेतु माटे. ते कडुं जे, सर्व जिनना तीर्थने बकुश कुशील वृद्धि पमामे डे एवा वचनथी, वळी ते बकुश कुशील. केवा डे? तो पोताना उत्कर्षने जणावनार जात्यादिक जे मदते जेमने स्पर्श करी शकता नथी, तथा गहस्थादिकने.विषे प्रतिबंध एटले था श्रावक तो मारा मारो योग केम

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