Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 672
________________ (९४८) - अथ श्री संघपटक स्तस्य आवेशः आवेगःनत्कर्षों येषामिति व्यधिकरणो बहुव्रीहिः तथा येन नवंति।संज्वलनकषायोदयत्वेन तेषां तन्निबंधनप्रथमादिकषायोदयानावात् ॥ अर्थः—ते महा सत्ववंत पुरुषो स्वजन तथा धन तथा पुत्र तथा स्त्री इत्यादिक संगनो त्याग करीने प्रव्रज्या गृहण करे ने तेमने गृहस्थादिकने विषे ममतादिक थवानो अवकाशज थतो नथी एटले तेवा महांत पुरुषो गृहस्थादिकने विषे ममता करेज नहीं, एतो नपुंसकनेज गृहस्थादिकने विषे ममता थाय ए हेतु माटे. ए पुरुषो एवा ने तेथी ममतादिक वर्जित कह्या. वळी संक्लेश कहेतां अविजिन्न प्रवाह पणे जणातो जे रोज अध्यवसाय, तेना जे आवेश कहेता वेग ते जे जेमने ए प्रकारनो व्यधिकरण बहुव्रीहि समास करवो, ते प्रकारना जे नथी. केम जे ते बकुश कुशीलने संज्वलन कषायनो उदय हे पण ते मदादिना कारण जूत जे प्रथमादि कषाय एटले अनंतानुबंधि आदि कषाय तेनो उदयज नथी ए हेतु माटे. टीकाः--न कदान्निनिवेशाः अनाजोगादिना अन्यथाकारं स्वयंप्रझते अन्युपगते बाबत्सितमानसाग्रहवंतो ये न जवंति तनिमित्तजनरंजनापरिणामालावात् ॥ ममताजीवन नयादयश्च साधुत्वबाधकत्वाद्यतोनां सर्वथा हेया एवेत्यतस्तेषामिह निषेधो विशेषण प्रदर्शितः ॥ अर्थः कुत्सित मानवाळा नथी पटले अजाणपणे अ

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