Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 675
________________ 48. अथ श्री संघपट्टका - सुत्रादिकनुं जणइत्यादिकयो ए प्रकारनुं फलपणुं थाय ने ए हेतु माटे, ए कडं तेणे करीने आ काळमां पण शास्त्रमा कहेला जे लक्षण तेणे सहित एवा यति बेज. पूर्वे प्रतिवादिए निषेध कयों हतो जे आ काळमां शास्त्रोक्त लक्षणवाळा साधु नथी, केमजे ते देखाता नथी. इत्यादि जे आशंका करी हती तेनुं खंगन कयु. टीकाः-कालादिदोषात् प्रायशस्तथाविधयतीनामदर्शने पि क्वापि तेन संतीत्यनाश्वासस्यकर्तुमयोग्यत्वात् ॥ ॥ यमुक्तं ॥ कालाश्दोस कहवि, जवि दीसंति तारिसा न ज॥ सवत्थ तहवि न बित्ति नेव कुज्जा अणासासं॥ अर्थः-कालादि दोषथी बहुधा ते प्रकारना यतिनुं नाम देखामई को जगाए थतुं नथी तेणे करीने ते प्रकारना सुविहित साधु नथी ए प्रकारनो विश्वास राखवो ते अयुक्त ने ए हेतु माटे ते वात शास्त्रमा कही बे, जो कालादि दोषथी कदापि ते प्रकारना सत्पुरुषो देखवामां श्रावता नथी तोपण सर्व जगाए तेवा सत्पुरुपोनो विच्छेद थयो जे ए प्रकारनो अविश्वास न राखवो. टीकाः-श्रातीर्थमागमे बकुशकुशीलानामनुवृतिश्रवथात् ॥ यदाह ॥न विणा तित्थं नियंहि नातित्था यनियंग्या॥ बकायसंजमायाव ताव अणुसज्जादुएहमिति ॥ बकुशकुशी-:

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