Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 704
________________ (100) + अथ श्री संघपष्टका टीकाः----अंतःसंसदमर्ककर्कशलसतर्कदणुतव्याहृतिसृक्प्रावाऊकगर्वचर्वणचणप्रखन्मनीषाजुषः // शिष्यस्तस्य यतीश्वरो जिनपतिर्जग्रंथसग्रंथधोपॅथत्याग्यपि संघपट्ट विवृत्तिं स्पष्टानिधेयामिमान् // 7 // अर्थः-सजाने विषे सूर्य जेवा आकरा अने शेजता एवा जे तर्क तेणे करीने प्रयास करी एवी जे नक्ति तेने उत्पन्न करनार एवा जे वादि लोको तेमनो जे गर्व तेने नाश करवा समर्थ एवी देदीप्यमान जे बुद्धि तेणे सहित एवा जे जिनचंउसूरि तेमना शिष्य जिनपति नामे यतिना अधिपति थया ते निग्रंथ डे तोपण ग्रंथ एटले शास्त्र अथवा आग्रंथ तेने रचता हवा, एटले विचार करवा योग्य एवी अने प्रगटपणे जेनो अर्थ डे एवी संघपट्टकनी आ प्रकारनी टीकाने करता हवा // 7 // ए प्रकारे जिनवानसूरिना शिष्य श्री जिनदत्तसूरि तेमना शिष्य श्री जिनचं सूरि तेमना शिष्य श्रीजिनपतिसूरि तेमनी करेली टीका समाप्त थ. ॥अक्षर गणनया 102400 श्लोक बंधन 3200 इति प्रमाणं // BRURBRBRBRBanane 1 ॥इति संघपट्टक वृत्तिः समाप्ता // Bernaannnnn

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