Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 689
________________ - अथ श्री संघपाका टीकाः-॥ तथाहि ॥ प्रथमांवलयाकाराणि शांतराणि त्रीणिरेखायुगलानि व्यवस्थाप्यते॥तेषांच त्रीएयंतरालानिजवं. ति॥ ततः सर्वांतरनानिवृत्ताकारासंस्थाप्यते॥ तस्याश्चषट्सुदि। कुद्धाज्यां दुद्धाभ्यां रेखान्यांषरकाअंत्यवलयांत्यारेखांयावत् ॥ एवमेतत् षमकंचक्रनवति ॥ अर्थः-तेज देखामे जे जे प्रथम वलयने आकारे एटले गोलाकार अंतर सहित त्रण रेखा जुगल स्थापन करवां एमनां त्रण अंत्रराल थाय. त्यार पड़ी ते सर्वनी वच्चे नाजी गोळ आका. रनी स्थापन करवी, तेनी ब दिशाने विषे बेबे रेखावमे उ श्राराज करवी, बेसा वलय अने बेबी रेखा सुधी, ए प्रकारे करे उते बा. रानुं चक्र थाय . टीकाः--ततएकस्य कस्यचिदरकस्यांतर्गतांत्यवलयांतरालेवृतस्य प्रथमाकरं लिख्यते ततोऽधस्ताहितीयमकरं ॥ तस्या धस्तान मध्य वलयांतरे तृतीयं ॥ततो धस्ताच्चतुर्थ पंचमे ततो धस्तादायवलयांतरालेषष्टं ॥ . 'टा ___ अर्थः-त्यार पड़ी कोश्क एक श्रारानी अंतर्गत वलयनी बच्चे प्रथम अक्षर लखवो त्यार पड़ी तेनी नीचे बीजो अक्षर खखवो तेनी नीचे मध्यम वलयानी वच्चे त्रीजो अक्षर लखवो त्यार पनी नीचे चोथो पांचमो अक्षर लखवो. त्यार पली नीचला वलयनी बच्चे हो अक्षर लखवो.

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