Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 4
________________ ESS VAAD RANAM दिन सम्राटसम्प्रति कुछ समय पश्चात् सम्राट् ने दूत के साथ पत्र अवन्ती भेज | मंत्री ने कठोर हृदय करके पत्र पढ़ादिया। दूत पत्र लेकर अवन्ती पहुँचा। सभा में मंत्री ने पत्र महाराज ने पढ़ा। पत्र पढ़ते ही मंत्री को सौंप सूंघ गया। कुणाल ने पूछा लिखा हैचाचाजी, पत्र में ऐसी क्या बात लिखी है? जिसे पढ़कर आप एकदम चुप हो गये। कृपया हमें बताइए। पिताश्री ने क्या लिखा है? अंधीयतां कुमारः। (कुमार को अंधा कर दिया जाय)/हे भगवान ऐसा कठोर आदेश राणा जाण्ण्ण्ण क्या ? कुणाल ने कहा-वासन 'पिताश्री की आज्ञा का पालन करना मेरा कर्त्तव्य है। लाइये लोह शलाका लेकर मेरी आँखें फोड़ दीजिए। सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सभी | PO RAN एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। नगर में गली-गली में लोग कहने लगेAn/ अरे ! सुना है राजकुमार ने पिता। की आज्ञा से आँखें फोड़ लीं। सम्राट अशोक ऐसा आदेश व नहीं दे सकते। एक पिता पुत्र को अंधा करने का आदेश कैसे दे सकता है? 30003कबाक और कुणाल ने गर्म लोहे की सरिया लेकर अपनी आँखों में भर लिए। हमें तो इसमें कुमार की सौतेली माताओं की चाल लगती है। सभा शोक मग्न हो गई। रानी तिष्यरक्षिता ने "अधीयतां कुमार" को "अंधीयतां कुमार" कर दिया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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