Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 15
________________ बारह दिन बाद धाय माता पुत्र को लेकर कुणाल की गोदी में रखते हुए बोलीवत्स ! तेरा यह पुत्र कितना सुन्दर सलौना है। इसके शरीर के शुभ लक्षण, इसकी भाग्य रेखा और चेहरे का तेज प्रताप अवश्य ही इसे एक दिन मौर्य वंश का प्रतापी सम्राट् बनायेंगे। यदि प्रभु कृपा होगी तो ऐसा ही होगा। वत्स ! तू पाटलीपुत्र जा। वहाँ जाकर क्या पिताश्री से भीख माँगूगा ? सम्राट सम्प्रति Jain Education International 29) कुणाल ने खिन्न स्वर में कहा। वत्स ! प्रभु भी उन्हीं पर कृपा करता है जो शुभ पुरुषार्थ करते हैं। तुझे भी कुछ पुरुषार्थ · करना पड़ेगा। माता ! मैं अंधा भला क्या पुरुषार्थ करूँ, बताओ? नहीं, अपनी संगीत कला से मगधपति को प्रसन्न करके पुत्र के लिए राज्य की माँग कर । 13 For Private & Personal Use Only धाय माँ ने उसे समझाया। www.jainelibrary.org

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