Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ सम्राट सम्प्रति पद्य सुनते ही सम्राट अशोक चौंक पड़े सम्राट् ने कुणाल को छाती से लगा लिया। उसकी आँखों से कौन हो तुम, हाँ पिताश्री, आपका आज्ञा अश्रुधारा बहने लगी ANV पिताश्री / मेरा भाग्य ही ऐसा बेटा कुणाल? पत्र पाकर जो अंधा हो गया, (बेटा ! यह सब था तो किसको दोष दूँ। अब मो वही आपका अभागा पुत्र कैसे हो गया? हो चुका उस पर आँसू बहाने कुणाल हूँ मैं। से कोई लाभ नहीं। AIYA अब सम्राट् सोचने लगे कि यह कैसे हो गया। अचानक उनके दिमाग में बिजली-सी कौंधी उन्हें वर्षों पानी घटना याद आ गई चलो प्रिय! भोजन का समय हो गया। आप चलिए स्वामी! मैं अभी आती हूँ। L हूँ ! अवश्य ही यह उसी दुष्टा की करतूत है। उसने तुरन्त सैनिकों को आदेश दिया- रानी तिष्यरक्षिता को बंदीगृह में बन्द करके कड़ा पहरा लगा दिया जाये। Jain Education International For Privateersonal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38