Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 22
________________ महाराज ! राजकुमार अभी नौसिखिया हैं। इस घोड़े को वश में रखना हँसी खेल नहीं है। सम्राट सम्प्रति सौदागर ! इसकी चिन्ता मत करो। इन भुजाओं में वह बल है जो संसार की सभी शक्तियों को अपने वश में कर सकती हैं। सम्प्रति ने घोड़े पर एक चाबुक लगाई। घोड़ा उछला, दोनों पैरों से ऊँचा उठकर जोर से हिनहिनाने लगा। Jain Education International सौदागर भी तैश में आ गया। बोलायदि आप इस पर सवारी कर लें तो मैं अपने एक सौ अश्व आपको भेंट दे दूँगा और नहीं तो आप मुझे क्या देंगे? सौ घोड़ों का पूरा मूल्य । सभी हँस पड़े। तभी कुमार सम्प्रति उछलकर घोड़े की पीठ पर चढ़ गया। कसकर लगाम खींची। घोड़ा घूमचक्कर खाने लगा। For Private Personal Use Only अरे ! घोड़ा कुमार को उछालकर पटकी कुमार ने अपनी जेब में से एक कंकर निकाला और घोड़े के कुमार ने ऐड लगाई। घोड़ा सीधा कान के बीच में दबा दिया। घोड़ा तुरन्त शान्त हो गया। सरपट दौड़ पड़ा। देगा। कुमार ! सावधान ! www.jainelibrary.org.

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