Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ सम्राट सम्प्रति | फिर कुणाल से बोला- पिताश्री ! मैंने आपसे यह सुनकर महामंत्री ने निवेदन कियापुत्र ! मैं अपने वरदान में कागिणी की महाराज ! युवराज ने तो परन्तु पुत्र ! तू राज्य इस कृत्य का याचना की है। मेरे लिए कागिणी के बहाने सबकुछ माँग । लेकर क्या करेगा? प्रायश्चित्त कैसे यही पर्याप्त है। लिया है। कागिणी राजपुत्रों का किसके लिए राज्य करूं? राज्य होता है। माँगा है? वत्स ! तुमने माँगा भी तो क्या माँगा? एक कागिणी मात्र? YOU पिताजी, आपको पौत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। क्या? सच! सम्राट अशोक ने तत्काल मन्त्री आदि को उन्हें लिवाने गाँव भेजा। पूरे सन्मान के साथ उन्हें पाटलीपुत्र लाया गया। विशाल समारोह मनाकर सम्राट् ने घोषणा की हमें सम्प्रति सूचना मिली है। अतः बालक का नाम "सम्प्रति कुमार" होगा। पाटलीपुत्र के भावी शासक के रूप में हम इसे अधिष्ठित करते हैं। कुणाल के पुत्र प्राप्ति का समाचार सुनकर सम्राट अशोक का हृदय उल्लास से भर उठा। उन्होंने पूछाबहूरानी, पौत्र सब कहाँ है?) आप द्वारा दिये गाँव में सब कुशल हैं। सात दिन तक नगर में उत्सव मनाया गया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Ja#सम्प्रति अभी-अभी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38