Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 21
________________ अब कुणाल अपने परिवार के साथ पाटलीपुत्र में ही रहने लगा। समय के साथ सम्प्रति बड़ा होने लगा। राजनीति शिक्षा सम्राट् सम्प्रति Tur ication-international कुछ और बड़ा होने पर महाराज ने उसे राजकुमारोचित शिक्षा दिलाने | की व्यवस्था की। सम्प्रति आचार्यों से विभिन्न शिक्षाएँ लेने लगा। वत्स ! शस्त्र से बड़े शास्त्र होते हैं। शस्त्र विद्या एक दिन महाराज अशोक राजसभा में बैठे थे। कुमार सम्प्रति भी पास ही बैठा था। तभी गांधार देश का एक सौदागर घोड़े लेकर। आया। एक सुन्दर सजीला घोड़ा उसने महाराज को भेंट दिया महाराज ! यह अश्व सभी प्रकार के लक्षणों में उत्तम है। जिस राजा के पास रहेगा वह अवश्य ही चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा। परन्तु महाराज यह हर किसी को अपनी पीठ पर बैठने नहीं देता। इसने बड़े-बड़े योद्धाओं को नाकों चने चबा दिये हैं। सम्राट् ने सम्प्रति की ओर देखा क्यों वत्स ! अश्व पसन्द है? सवारी करोगे इस पर ? For Privateersonal Use Only महाराज ! अश्व क्रीड़ा तो क्षत्रियों का व्यसन है। आप आज्ञा दीजिए। www.jainelibrary.org

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