Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 33
________________ सम्राट सम्प्रति भूख से व्याकुल मनुष्य के कष्टों की कल्पना करके आचार्यश्री ने एक बार सम्राट् से कहासम्राट् के शरीर में सिहरन पैदा हो गई। उसने राज-सेवकों को बुलाकर कहानगर के चारों दरवाजों के ज्ञान के अभाव में धर्म बाहर विशाल भोजनशालाएँ स्थिर नहीं रहता, इसलिए बनवा दो। कोई भी लोगों में ज्ञान का प्रसार दीन-दुःखी, अपंग, भूखा होना चाहिए। नहीं सोये। CHO सम्राट् के आदेश से भोजनशालाओं का निर्माण किया गया। प्रतिदिन हजारों मनुष्यों को भोजन मिलने लगा। आचार्यश्री के संकेतानुसार सम्राट् ने आज्ञा दी- इस प्रकार जिनमन्दिर निर्माण, धर्म प्रचार, ज्ञान प्रचार राज्य के सभी मुख्य-मुख्य तथा जीव दया आदि शुभ कार्यों में अकूत धन व्यय करके नगरों में ज्ञानशालाएँ खुलवाईं सम्राट् सम्प्रति ने महान् पुण्यों का अर्जन किया। जाएँ। शिक्षकों को राज्य की तरफ से वेतन दिया जाए और बालक, युवक सभी को निःशुल्क शिक्षा दी जाए। दिन 31 Jalu a tion International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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