Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 23
________________ एक घंटा बाद कुमार ने घोड़ा लाकर सौदागर के सामने खड़ा कर दियालो तुम्हारा घोड़ा। ऐसे घोड़ों पर सवारी करना तो हमारी क्रीड़ा है। 'महाराज ! शर्त के अनुसार एक सौ अश्व आपको भेंट करता हूँ। एक दिन महाराज अशोक अपने परिवार के साथ अन्तःपुर में बैठे थे। उन्होंने कुणाल से कहा'वत्स ! अब सम्प्रति युवा हो गया है। अनेक राजाओं की राजकन्याओं के सम्बन्ध आ रहे हैं। इसके विवाह की तैयारी करो। जो आज्ञा पिताश्री ! सम्राट सम्प्रति | महाराज अशोक ने सम्प्रति को अपने बाजुओं में कस लिया- वत्स ! तेरा तेज, UUUUUUY JOU (प्रताप, शौर्य एक दिन तुझे अवश्य ही दिग्विजयी सम्राट् बनायेगा। सम्प्रति का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ।। | विवाह उत्सव के समय महाराज अशोक ने घोषणा कीमैं अब बहुत वृद्ध हो चुका हूँ। वृद्ध अवस्था तो धर्मध्यान, प्रभुभक्ति का समय है। इसलिए युवराज सम्प्रति को मगध का राजसिंहासन सौंपना चाहता हूँ। 21 -For Private & Personal Use Only इस प्रकार विवाह उत्सव में ही सम्प्रति। का राजतिलक समारोह मनाया गया। www.jainelibrary.org

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