Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 27
________________ सम्राटसम्प्रति छत पर खड़ा सम्प्रति इस रथ यात्रा को देखने लगा। सेवकों ने सम्राट् को उठाकर पलंग पर लिटाया। हवा तभी उसकी दृष्टि उस दिव्य प्रभावशाली वृद्ध सन्त पर की। पानी के छींटे डाले। थोड़ी देर बाद होश आया तो पड़ी। सम्राट् बड़े ध्यानपूर्वक उनको देखने लगा- - उसकी स्मृति में कुछ दृश्य आने लगेये महापुरुष परम शान्त आत्मा तो परिचित ) भोजन दे दो। से लगते हैं। कहीं देखा है मैंने इनको? ) इन्हें देखते ही मेरे मन में स्नेह क्यों जाग, रहा है? लगता है जाकर इनके चरणों में 3 सिर नवाऊँ। इनको कहीं देखा है। किरन मैं इनके साथ रहा हूँ। सोचते-सोचते सम्राट् मूर्छा खाकर गिर पड़ासम्राट् उठकर बैठ गये इधर-उधर देखा।। सेवकों ने पूछा- IIIDI महाराज ! क्या Uणा हुआ? अब तबियत ण कैसी है? इतना कहकर सम्प्रति सीधा राजमहल से नीचे उतरा और रथयात्रा के पीछे-पीछे दौड़ा। सम्राट् के पीछे सैनिक, मंत्री दौड़ पड़े। सब एक-दूसरे से पूछते हैं मैं बिलकुल ठीक हूँ। गुरुदेव कहाँ हैं? क्या हुआ सम्राट् को? क्यों दौड़ रहे हैं? (पता नहीं। और उत्तर दिए बिना सभी सम्राट् के पीछे-पीछे दौड़ने लगे। 25 o Palvates Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Internation

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