Book Title: Samrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 14
________________ अनेक धनवान सेठ-सेठानी उस नवदीक्षित मुनि की सेवा परिचर्या में जुट गये। कोई पेट पर लेप करता है, कोई हाथों पर दवा मल रहा है। यह सब देखकर नवदीक्षित मुनि सोचता है अहो, साधु बनते ही मेरे जीवन में कितना बड़ा परिवर्तन आ गया। ये सेठ साहूकार मेरी सेवा कर रहे (हैं। गुरुजी ने मुझे मुनि दीक्षा देकर कितना बड़ा उपकार किया है। Jain Education International सम्राट सम्प्रति नव दीक्षित मुनि की अस्वस्थ दशा देखकर आचार्यश्री ने पास आकर नवदीक्षित मुनि को आराधना कराईमन को शान्त रख, मुनि बन का महान पुण्य फल तुझे अगले जन्म-जन्म तक मिलेगा। अवन्ती संध्या के समय भवन की छत पर कुणाल अकेला ही एकान्त में बैठा सितार बजा रहा था। तभी धाय माता सुनन्दा ने आकर बधाई दी पुत्र कुणाल, बधाई हो ! शरतश्री ने एक तेजस्वी, रूपवान शिशु को जन्म दिया है। वाह ! इस प्रकार शुभ विचारधारा में बहते -बहते नवदीक्षित मुनि का आयुष्य पूर्ण हो गया। श्रावकों ने सम्मानपूर्वक मुनि की शरीर क्रिया सम्पन्न की। गुरुदेव ! मुनि जीवन पाकर में धन्य हो गया। कुणाल एक क्षण के लिए प्रसन्न हुआ, परन्तु अगले ही क्षण उसके मुख पर मलिनता छा गईहे माता ! मुझ 'वत्स ! निराश मत हो । जैसे भाग्यहीन के शरतश्री को आये हुए हाथी, घर में जन्म लेने सिंह और कल्पवृक्ष के शुभ वाले बालक का क्या भाग्य हो सकता है? 12 For Private & Personal Use Only स्वप्न पुत्र के महान भाग्यशाली होने के सूचक हैं। तू विश्वास रख www.jainelibrary.org.

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