________________
136
वसन्तकुमार भट्ट
(३)
भास की तरह, महाकवि कालिदास भी दो बार 'अनुक्रोश' शब्द का प्रयोग किया है । 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के सप्तम अङ्क (श्लोक - २४ ) में दुष्यन्त क्षमायाचना करता हुआ, शकुन्तला को प्रणाम कर रहा है । तब शकुन्तला बोलती है :
SAMBODHI.
उत्तिष्ठत्वार्यपुत्र । नूनं मे सुचरितप्रतिबन्धकं पुराकृतं तेषु दिवसेषु परिणाममुखम् आसीद्, येन सानुक्रोशोऽप्यार्यपुत्रो मयि विरसः संवृत्तः ॥
यहाँ पर शकुन्तला दुष्यन्त का एक सानुक्रोश व्यक्ति के रूप में परिचय कराती है । अब प्रश्न होता है कि संस्कृत कविओं ने क्या यह 'अनुक्रोशत्व' पति-पत्नी या नायक-नायिका जैसे परिसीमित सम्बन्धों में ही बताया है, या व्यापक रूप से अन्य सम्बन्धों / सन्दर्भों में भी बताया है ?
इस प्रश्न के अनुसन्धान में महाकवि कालिदास ने 'मेघदूत' के अन्तिम श्लोक में 'अनुक्रोश' शब्द का जो प्रयोग किया है वह द्रष्टव्य है
:
एतत्कृत्वा प्रियमनुचितप्रार्थनावर्तिनो
सौहार्दाद्वा विधुर इति वा मय्यनुक्रोशबुद्धया । इष्टान्देशाञ्जलद विचर प्रावृषा संभृतश्रीर्मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोगः ॥ *
यहाँ पर यक्ष मेघ से प्रार्थना करता है कि तुम मुझ पर अनुक्रोश- बुद्धि से देखो, और मैं अनुचित याचना करनेवाला हूँ, फिर भी मेरा प्रिय करो। क्योंकि, हे मेघ ! यह यक्ष बेचारा विधुर है, पत्नी से वियुक्त हुआ है, तो परदु:खदुःखिता से प्रेरित होकर मेरी मदद करो। मेरा सन्देश अलका में स्थित मेरी प्रियतमा यक्षिणी को पहुँचा दो ॥ - यहाँ पर यक्ष एवं मेघ के बीच में एक सुहृद् का सम्बन्ध है; और वहाँ पर 'अनुक्रोश' शब्द का प्रयोग है ।
इसी तरह भवभूति ने भी मालती माधवम्' में 'अनुक्रोश' शब्द का प्रयोग किया है। मालती ने एक बार ऐसा अनुभव किया था कि पिता भूरिवसु के लिए राजाराधन करना ही बड़ी चीज है, और अपनी पुत्री मालती का तो कोई मूल्य ही नहीं है ।' परन्तु जब वह, आगे चल कर, द्वितीय अपहरण के प्रसङ्ग पर सुनती है कि पिताजी पुत्री के विरह में आत्मघात के लिए उद्यत हुए है, तब वह बोलती है ... मया पुनरनार्यया निरनुक्रोशा यूयमिति सम्भावितमासीत् ॥' यहाँ पर एक पुत्री अपने पिता की सानुक्रोशता देख कर अपनी निरनुक्रोशता की निन्दा करती है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org