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वसन्तकुमार भट्ट
SAMBODHI. ___ वरणीय जामाता में कौन कौन से गुण होना आवश्यक है, इसकी एक ध्यानार्ह मीमांसा यहाँ रखी गई है। वासवदत्ता के पिता महासेन श्लाघनीय कुल के बाद 'सानुक्रोश' नामक गुण का निर्देश करते है । जो गुण मृदु होने पर भी मनुष्यजीवन में बलवान् बताया गया है। ___महाकवि भास ने इस शब्द का प्रयोग अन्यत्र भी कई बार किया है। जैसे कि-'स्वप्नवासवदत्तम्' के प्रथम अङ्क में ब्रह्मचारी बताता है कि - लावाणक ग्रामदाह में वासवदत्ता भस्मसात् हो गई है। इसी बात को सुनकर राजा उदयन ने भी अग्नि में अपने को डाल कर प्राण छोड़ने का निश्चय किया। ब्रह्मचारी यह बात अवन्तिकावेषधारिणी वासवदत्ता सुनती है और तत्क्षण एक स्वगतोक्ति बोलती है – जानामि जानाम्यार्यपुत्रस्य मयि सानुक्रोशत्वम् । “मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि आर्यपुत्र मेरे लिए सानुक्रोश है।"
इसी नाट्यकृति में, दूसरे स्थान पर भी इसी 'सानुक्रोश' शब्द का प्रयोग ध्यातव्य है : द्वितीय अङ्क में पद्मावती, चेटी एवं वासवदत्ता के बीच में कुछ परिहास चल रहा है। वहाँ वासवदत्ता चेटी से पूछती है कि किस कारण से प्रेरित होकर पद्मावती उदयन की अभिलाषा करती है ? तो, चेटी उत्तर देती है : “सानुक्रोश इति।" वह उदयन सानुक्रोश व्यक्ति है, इस लिए पति के रूप में उसकी अभिलाषा की जाती है। वासवदत्ता भी इस अभिलाषा की अनुमोदना करती हुई आत्मगत बोलती है : “जानामि जानामि । अयमपि जन एवम् : उन्मादितः।" यह व्यक्ति भी (अर्थात् स्वयं वासवदत्ता भी) यही अनुक्रोशत्व को देखकर उदयन के लिए उन्मादित हुई थी। इस संवाद से सूचित होता है कि नायक को नायिका के लिए अथवा नायिका को नायक के लिए जो प्रेम होता है, उसमें देहसौन्दर्यजनित आकर्षण से बचकर कोई अन्य कारण भी हो सकता है जिसका नाम 'अनुक्रोश' है। भास की दृष्टि में यह अनुक्रोशत्व प्रेमोद्भव का एक निमित्त एवं सदृढ़ प्रेम का आधार भी बनता है।
(२)
मनुष्यों में यह जो अनुक्रोशत्व होता है, वही उसका एक सच्चा अनितर साधारण वैशिष्ट्य है।
क्योंकि- आहार-निद्रा-भय-मैथुनश्च समानमेतद् पशुभिर्नराणाम् । उक्ति से बताया गया है कि यदि हमें दूसरी प्राणीसृष्टि से होना है तो धर्म का सेवन करना चाहिए ।
धर्मो हि एको .... धर्मेण हीनः मनुष्यः पशुः भवति । अब प्रश्न उठता है कि कोऽसौ धर्मः ?
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