Book Title: Sambodhi 2002 Vol 25
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 146
________________ Vol. XXXV, 2002 जैन दर्शन में निर्जरा तत्त्व 141 - इस कथन पर टीका करते हुए अमृतचन्द कहते हैं। 'यह जीव वास्तव में अनेक कर्मों की निर्जरा करता है । इसीलिए यह सिद्धान्त हुआ कि अनेक कर्मों की शक्तियों को नष्ट करने में समर्थ तपों से बुद्धि को प्राप्त हुआ जो शुद्धोपयोग है, वह भाव निर्जरा है। निर्जरा के भेद जैन दर्शन में आठ प्रकार के कर्म बताये गये हैं। जब वे कर्म उदय होकर फल देते हैं और बाद में झड़ जाते हैं। इसे ही निर्जरा कहते हैं। इसके दो भेद हैं : ७ १. भाव निर्जरा २. द्रव्य निर्जरा १. भाव निर्जरा : भावावस्था में साधक की आत्मा में कर्मों के नाश करने की भावना जाग्रत होती है। इसी अवस्था को भाव निर्जरा कहते हैं । अब पुनः भाव निर्जरा के दो भेद किये जाते हैं : I (१) सविपाक निर्जरा (२) अविपाक निर्जरा - (१) सविपाक निर्जरा • भावावस्था में भोग लेने के बाद कर्म- पुद्गलों का स्वतः नाश हो जाता है, अर्थात् उदय में जाने के बाद कर्म आत्मा स्वयं ही अलग हो जाते हैं।' आत्मा के साथ एक स्थान विशेष में कर्म भी अपनी स्थिति पूर्ण होने पर ही अलग होते हैं। इसलिए उसे “सविपाक निर्जरा" अथवा " अकामभाव निर्जरा" कहते हैं । (२) अविपाक निर्जरा उदय काल की प्राप्ति होने के पूर्व ही आत्मा के पुरुषार्थ से यदि कर्म अलग हो जायें तो वह "अविपाक निर्जरा" अथवा "सकामभाव निर्जरा" कहलाती है । - एक अन्य वर्गीकरण के अनुसार निर्जरा दो प्रकार की होती है- ." सकाम निर्जरा और अकाम निर्जरा।" जो व्रत के उपक्रम से होती है, वह सकाम निर्जरा है, और जो जीवों के कर्मों के स्वतः विपाक से होती है वह अकामनिर्जरा है। आचार्य उमास्वामी के अनुसार निर्जरा दो प्रकार की होती है – अबुद्धिपूर्वक और कुशलमूल । इनमें नरक आदि गतियों में जो कर्मों के फल का अनुभव न किसी तरह के बुद्धिपूर्वक प्रयोग के बिना करता है, उसको " अबुद्धिपूर्वक निर्जरा" कहते हैं । तप और परीषह जय कृत निर्जरा " कुशलमूल" है । " स्वामी कार्तिकेय के अनुसार आठो कर्मों के उदय के बाद फल देकर कर्मों के झड़ जाने को निर्जरा कहते हैं। यह निर्जरा दो प्रकार की होती है। • स्वकाल प्राप्त और तपःकृत । प्रथम स्वकाल प्राप्त निर्जरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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