Book Title: Sambodhi 1979 Vol 08
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ V. M. Kulkarni KLV (p. 181 f.n.-3) reads dhūā, jāyādúo probly a misprint for jamāduo and gharalliya for 'duhidā', 'jāmāuo' and 'ghariņiā' respectively. (45) Ama asaio orama .. .. (p. 479) आम असइओ ओरम पइव्वए ण तुऍ मलिणिों सीलं । कि उण जणस्स जाअव्व चंदिलं तं ण कामेमो ॥ [आम असत्यः उपरम पतिवते न त्वया मलिनितं शीलम् । किं पुनर्जनस्य जायेव नापितं तं न कामयामहे ॥] The GS (v. 17) reads this gāthā as follows : आम असइ म्ह ओसर पइव्वए ण तुह मइलिअं गोतं । कि उण जणस्स जाअ व्व चंदिलं ता ण कामेमो॥ [आम असत्यः स्मः अपसर पतिव्रते न तव मलिनितं गोत्रम् । किं पुनर्जनस्य जायेव नापितं तावन्त कामयामहे ॥] (46) Uppahajaae asohinie .. .. (p. 493) उप्पहजाआए असोहिणीए / असोहिरीए फल-कुसुम-पत्त-रहिआए । बेरीए / बोरीए वई देंतो पामर हो ओह सिज्जिहसि । हो हो हसिजसिः ॥ [ उत्पथ-जातायाः अशोभनायाः / अशोभित्र्याः (=अशोभनशीलायाः). फलकुसुमपत्ररहितायाः। बदर्या वृत्तिं ददत् पामर भो उपहसिष्यसे । भो भो हसिष्यसे ॥] The alternative reatlings, found in Hemacandra's KĀS (P. 360$ are bo tter and deserve to be preferred. *(47) Langhiagaana phalahilaao .. .. (p. 499) लंघिअ-गअणा फलहीलआओ होतु त्ति कढअंतीए । हलिअस्स आसिसं पाडिवेस-वहुआ विणिव्वविआ ॥ [लचितगगनाः कार्पासलता भवन्त्विति वर्धयन्या । . हालिकस्याशिषं प्रातिवेश्यकवधु का निर्वापिता (=निर्वृतिं प्रापिता)।.. *(48) Golakacchakudange .. .. (p. 500) गोला-कच्छ-कुडंगे भरेण जंबूसु पच्चमाणासु । हलिअवहुआ णिअंसइ. जंबूरसरत्तभं सिअभं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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