Book Title: Sambodhi 1979 Vol 08
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Prakrit Verses in Dhvanyaloka with Locana (40) Ma panthan rundhro (2) .. ... (p. 352)
मा पंथं रंध महं अवेहि वालअ अहो सि अहिरीओ । अम्हे अणिरिक्काओ सुण्णघरं रक्खिअव्वं णो ॥ [ मा पन्थानं रुधः मम, अपेहि बालक (=अप्रौढ) अहो असि अहीकः ।
वयं परतन्त्राः शून्यगृहं रक्षितव्यमस्माकम् ॥] Weber includes this gāthā in his edition of Sś (No. 961) with a few variant readings. Hemacandra and the author of KLV include it in their works KAS (p. 84), KLV (p. 176) (41) Annatta vacca balaa .. .. (p. 352)
अण्णत्थ वच्च बालअ ण्हाअंतिं कीस में पुलोएसि । एअं भो जाआ-भीरुआण तूहं चिअ ण होइ । [अन्यत्र व्रज बालक (=अप्रौढबुद्धे) स्नान्ती कस्माद् मां प्रलोकयसि ।
एतद् भो जायाभीरुकाणां तीर्थमेव न भवति ॥] (42) Sama-visama-nivvisesa .. .. (p. 356)
सम-विसम-णिव्विसेसा समंतओ मंद-मंद-संचारा । अइरा होहिंति पहा मणोरहाणं पि दुल्लंघा ॥ [सम-विषम-निर्विशेषाः समन्ततो मन्द-मन्द-सञ्चाराः । अचिराद् भविष्यन्ति पन्थानो मनोरथानामपि दुर्लचचाः ॥]
. -GS VII .73 (43) Ekanto ruai pia .. .. (p. 383)
एकत्तो रुअइ पिआ अण्णत्तो समर-तूर-णिग्योसो। पोहेण रणरसेण अ भडस्स दोलाइअं हिअरं ।। । [एकतो रोदिति प्रिया अन्यत्र समर-सूर्य-निर्घोषः । स्नेहेन रणरसेन च भटस्य दोलायितं हृदयम् ।।]
ss..966 (44) Lacchi duhida jamauo .. .. (pp. 463-64)
लच्छी दुहिदा जामाउओ हरी तस्स घरिणिआ गया। अमिअ-मिअंका अ सुआ अहो कुडुंब महोअहिणो ॥ [लक्ष्मीर्दुहिता जामातृको (=जामाता). हरिस्तस्य गृहिणी गटा। अमृत-मृगाकौ च सुतौ, अहो कुटुम्बं महोदधेः ॥]
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