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अनुभूति का जन्म होता है । इस अनुभूति को ही हम मूल्यो की धनुभूति कहते हैं । वह अब वस्तु जगत मे जीते हुए भी मूल्यजगत मे जीने लगता है । उसका मूल्य जगत मे जीना धीरे-धीरे गहराई की ओर बढता जाता है । वह अब मानव मूल्यो की खोज मे सलग्न हो जाता है । वह मूल्यो के लिए ही जीता है और समाज मे उनकी अनुभूति बढे इसके लिये अपना जीवन समर्पित कर देता है | यह मनुष्य की चेतना का एक दूसरा आयाम है |
समयसार मे मुख्य रूप से सर्वोपरि प्राध्यात्मिक मूल्यो की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है । इसका उद्देश्य समाज मे ऐसे
समयमार में 415 गाथाएं हैं। इनमे से ही हमने 160 गाथानो का चयन समयमार चयनिका' के अन्तर्गत किया है।
इसके रचयिता
श्राचार्य कुन्दकुन्द हैं ।
प्राचार्य कुन्दकुन्द दक्षिरण के निवासी ये । कोण्डकुन्द था जो प्राध्रप्रदेश के अनन्तपुर जिले मे स्थित इनका समय 1 ई पूर्व से लगाकर 528 ई पश्चात् तक
माना गया है ।
एन उपाध्ये के अनुसार इनका समय ईस्वी सन् के प्रारम्भ मे रखा गया है । "I am inclined to believe, after this long survey of the available material, that Kundakunda's age lies at the beginning of the Christian era" (P 21 Introduction of Pravacanasara)
इनका मूल स्थान
कोनकोण्डल है ।
याचार्य कुन्दकुन्द के सभी ग्रन्थ (ममयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकायसार, नियमसार, भ्रष्टपाहुड प्रादि ) अध्यात्म प्रधान शैली मे लिखे गये होने के कारण अध्यात्म-प्रेमी लोगो के लिए आकर्षण के केन्द्र रहे हैं ।
चयनिका
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