Book Title: Samaysara Anushilan Part 02
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ प्रकाशकीय डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखित समयसार अनुशीलन भाग २ के उत्तरार्द्ध (गाथा ११६ से १६३ तक) का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। पूर्व में प्रकाशित भाग १ (गाथा १ से ६८ तक) तथा भाग २ का पूर्वार्द्ध (गाथा ६९ से ११५ तक) का अध्ययन तो आप कर ही चुके हैं और अबतक प्रकाशित अनुशीलन की लोकप्रियता से भी आप भली-भाँति परिचित हैं। इसका पठन-पाठन एवं स्वाध्याय नियमित रूप से विधिवत अमेरिका आदि सुदूरवर्ती देशों में भी चल रहा है और अमेरिकावासी रजनीभाई गोशलिया ने तो इसका गुजराती अनुवाद भी तैयार कर लिया है, जो शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है तथा गुरुप्रसाद (गुजराती) में क्रमशः छप रहा है। मराठी अनुवाद भी तैयार हो रहा है, जो मराठी वीतराग-विज्ञान में क्रमशः प्रकाशित भी हो रहा है। यह तो सर्वविदित ही है कि विगत २० वर्षों में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ने आत्मधर्म और वीतराग-विज्ञान के सम्पादकीय लेखों के रूप में जो भी लिखा है; वह सब आज जिन-अध्यात्म की अमूल्य निधि बन गया है, पुस्तकाकार प्रकाशित होकर स्थाई साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। न केवल हिन्दी भाषा में उसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, अपितु गुजराती, मराठी, कन्नड, तमिल, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं में उसके अनुवाद हो चुके हैं तथा अनेकों बार प्रकाशित हो चुके हैं। ___इनमें धर्म के दशलक्षण, क्रमबद्धपर्याय, बारह भावना : एक अनुशीलन, चैतन्य चमत्कार, निमित्तोपादान, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, शाश्वत तीर्थधाम : सम्मेदशिखर, शाकाहार जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में, आत्मा ही है शरण, गोम्मटेश्वर बाहुबली और परमभावप्रकाशक नयचक्र प्रमुख हैं। इन सब कृतियों ने जैन समाज एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है। उनके लिखे साहित्य की अबतक आठ भाषाओं में ३६ लाख से अधिक प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने अबतक लगभग

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