Book Title: Samayik Ek Adhyatmik Prayog Author(s): Subhash Lunkad Publisher: Kalpana Lunkad View full book textPage 9
________________ - - मनोगत शास्त्रज्ञ गौतममुनिजी म.सा. (प्रथम ) इनकी प्रेरणा से मैं सामायिक करने लगा। पर प्रचलित सामायिक में मुझे कभीशांति नही मिली-आध्यात्मिक आनंद नही आया-जो ध्यान करने पर मिलता था। इसलिए जो भी संत संपर्क में आए, उनके साथ मैं सामायिक के बारे में चर्चा करता रहा । सामायिक के बारे में मेरी अस्वस्थता प्रकट करता रहा। मार्गदर्शन लेता रहा। कुछ धार्मिक किताबें पढी। सामायिक में ही सामायिक के बारे में स्वाध्याय करता रहा। अपनी तरफसेसामायिक में कुछ आध्यात्मिक प्रयोग करता रहा। कुछ बदलाव करता रहा। धीरे धीरे सामायिक के बारेमे मेरी रूचि बढ़ती गई। समझ बढती गई। । पिछले साल सन २००० के संवत्सरी के रात में बारह बजे मैने जो सामायिक की,वह मुझे सबसे अच्छी सामायिक लगी । एक ऐसी सामायिक जिससे मुझे पूर्णतया शांति मिलीसमाधान मिला। ऐसा लगा कि, यही सच्ची सामायिक है। ऐसी ही सामायिक हर किसीने करनी चाहिए। ऐसीसामायिकजोशास्त्रशुष्ट | द लगती है । आधुनिक विज्ञान के स्तर पर भी सही उतरती है। ऐसी सामायिक जो किसी भी सुशिक्षित, आधुनिक शास्त्रीय दृष्टिकोण रखनेवाले व्यक्ति को पसंद आए । मैने मेरी इस सामायिक का जिक उस वक्त पुणे में स्थित साध्वी मधुरिमताजी म.सा. के पास किया। उन्होने मुझे उसे लिखने की प्रेरणा दी। शुरू मे एक संक्षिप्त सामायिक लिखकर उनके तथा परमपूज्य Marasinikanina - - -Page Navigation
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