Book Title: Samayik Ek Adhyatmik Prayog
Author(s): Subhash Lunkad
Publisher: Kalpana Lunkad

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Page 22
________________ ३) धर्मध्यान मे चित्तवृत्ति आत्मोन्मुखी हो जाती है। ४) चतुर्थगुण स्थान से सप्तम् गुणस्थान तक धर्मध्यान का अधिकारी माना गया है। शुक्लध्यान १) शुक्लध्यान मे वित्तविशुध्दि का अभ्यास परिपक्व हो जाता है। फलिभूत हो जाता है। २) शुक्लध्यान मे सिर्फ आत्मा का ही आलंबन होता है। ३) शुक्लध्यान मे रागद्वेष से परे होकर आत्मा विशुध्द रूप मे प्रकट __हो जाता है। ४) सप्तम गुणस्थान से १४ वे गुणस्थान तक शुक्लध्यान ही होता है ध्यान का महत्व १) बिना ध्यान के आत्मदर्शन नही होता। ध्यान से ही आत्मा का शुध्द प्रतिभास होता है। (ज्ञानसागर :३६) २) ध्यानाभ्यास के बिना बहुतसे शास्त्रों का पठण और नानाविध आचारों का पालन व्यर्थ है। (आचार्य कुंदकुंद लिखित मोक्षपाहूड गा २३-१००) - इसतरह समताभाव पाने के लिए और उसे जीवन उतारने के लिए सामायिक मे दो महत्वपूर्ण विधियाँ दी हैं . १) काउसण (कायोत्सर्ग) २) धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान (६-क) कायोत्सर्ग और धर्मध्यान करने से समताभाव कैसे प्राप्त होता है? जब हम कायोत्सर्ग करने से शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान जान १०

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