________________ क्षमापना निज पर का सब भेद भुलाके विश्व-भाव की ज्योति जगा ले। कटुता कल्मष, वैर भाव के, अंतर-मल को आज मिटा ले // हो जाए यदि भूल भाई से, आत्म-धर्म की भूल भ्रमों से | स्नेह-छांव फिर भी दे, उर लेक्षमापना का अमिय पिला दें। -उपाध्याय अमरमुनि धर्म न हिंदू बौद्ध है, सिक्ख न मुस्लिम जैन | धर्म चित की शुद्धता, धर्म शंति सुख चैन || सम्प्रदाय ना धर्म है, धर्म ना बने दिवार | धर्म सिखाये एकता, धर्म सिखाये प्यार ||