Book Title: Samayik Ek Adhyatmik Prayog
Author(s): Subhash Lunkad
Publisher: Kalpana Lunkad

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Page 52
________________ | अभिप्राय 1) प.पु. विनोदमुनि म .सा(अहमदनगर) सामायिक के संबन्ध मे आपने अपना चिन्तन-मनन प्रस्तुत किया।सामायिक का स्वरूप और विधि की प्रक्रिया का भी उल्लेख किया / यह एक अच्छी बात है / किसी भी बात को या विचार को मानने के पूर्व उसपर गहराई से चिन्तन-मनन करना तत्पश्चात उसे मान्यता देना और प्रयोग की भूमिपर उसे उतारना, यह एक बहुत सुंदर पध्दति है। सामायिक साधना जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। इसकी साधना से मनुष्य चरमोत्कर्ष की भूमिका को प्राप्त कर सकता है / जिन जिन महानोंने साध्य सिध्दी उपलब्ध की है वह इसी के द्वारा की है। सामायिक का मूल व उसका उपादान समत्व भाव मे ही है। यह आत्मा का निज गुण है, स्वाभाविक गुण है। आपने जो सामायिक की विधि लिखी है , वह प्रारंभिक स्थिति वालों के लिए उपयोगी है। लक्ष्य तो सहज सामायिक का हो / तभी आगे बढा जा सकेगा। आपने सामायिक को जानने समझने तथा उसे क्रियात्मक रूप देने का जो श्रम परिश्रम किया है , वह सुंदर है। अभ्यास करते जाइये और सामायिक साधना में निरंतर आगे से आगे बढते जाएं। यही हमारी मंगल भावना है। विनोदमुनि 40

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