Book Title: Samayik Ek Adhyatmik Prayog
Author(s): Subhash Lunkad
Publisher: Kalpana Lunkad

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ कायोत्सर्ग की विधि से हमे अपने खुद की अविनाशी चेतना का ज्ञान होता है - विनाशी शरीर मे बसे हुए अविनाशी आत्मा की अनुभूति से शरीर आत्मा का भेदविज्ञान का हमे पता चलता है। हम खुद को जान लेते है (जो एणंजाणइ) इसलिए कायोत्सर्ग यह बहुतही कीमती,अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है। (६ - ब) धर्मध्यान क्या है? धर्मध्यान = धर्म +ध्यान धर्म = धर्म का अर्थ है जो जैसा है उसको वैसे जानना याने कि हर चीज के गुणधर्मों को समझना - याने कि आत्मस्वरूप को समझना ध्यान = साक्षीभाव से मन को एकाग्र करना, सभी विचारों से तथा विकारों से दूर करना। . "एकाग्र चिन्ता निरोधो ध्यानमा" अर्थात- एकाग्रता पूर्वक सभी विचारोंका निरोध करना ही ध्यान है। तत्वानुशासन मे एक अवलंबन मे चित्त को स्थिर करने को ध्यान कहा गया है। "चित्तरसेगग्गया हवई झाणं।" (आवश्यक नियुक्ति १४५६) अर्थात - चित्त को एकाग्र करना ही ध्यान है। ध्यान करने के लिए ध्यान मुद्रा का स्वरूप नीचे दिए हुएश्लोक मे बताया हुआ है "अनेश्चेतो बहिश्चक्षु रथःस्थाप्य सुखासनम। समत्वंच शरीरस्य ध्यान मुद्रेति कथ्यते॥" (गोरक्षाशतक ६५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60