Book Title: Samayik Ek Adhyatmik Prayog
Author(s): Subhash Lunkad
Publisher: Kalpana Lunkad

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Page 23
________________ लेते है,और उसकी वजह से शरीर के ममत्व से छूटने लगते है और अंदरूनी अविनाशी चेतना की प्रचिती लेते है। धर्मध्यान मे आगे हम इसी विषयपर चिंतन करते हुए ध्यानपूर्वक यह भी अनुभूति लेते है कि, मेरे अंदर जो चेतना भरी है वैसी ही चेतना सभी प्राणिमात्रोंमे भरी है - शरीर के स्तरपर हम भले ही अलग अलग दिखाई देते होंगे -पर चेतना के स्तरपर सभी प्राणिमात्रा समान है। यह हुआ समताभाव। यह समताभाव धर्मध्यान के व्दारा हमारे अंतर बाहय जीवन में उतरता है। और इसी समताभाव के अत्युच्च शिखर पर चढकर हम शुक्ल ध्यान के व्दारा -परमात्मा पद तक पहुँचते है। यह कैसे घटित होता है यह हम बाद में "सामायिक से लाभ" इस प्रकरणमे अधिक स्पष्टता से देखेंगे। इसतरह सामायिक मे कायोत्सर्ग और धर्मध्यान इन दो विधियों से हम समताभाव प्राप्त करते हैं। इसलिए हम सामायिक को कायोत्सर्ग ध्यान , धर्मध्यान, या समतायोग भी कह सकते हैं। तो कैसे करे यह धर्मध्यान, यह कायोत्सर्ग ध्यान, यह सामायिक ? इसकी विधि क्या है ? इसे समझनेके पहले हमे प्रचलित पारंपारिक सामायिक की विधि में जो त्रुटियाँ लगती है उन्हें समझ लेना जरूरी है। ७) प्रचलित सामायिक की टियाँ १) पाटियोंकीभाषा-प्रचलित सामायिक के विधि मे अर्धमागधी भाषा मे कही जानेवाली पाटियों का अर्थ नब्बे प्रतिशत लोग नही जानते फिर भी तोते की तरह रटकर बोलते रहते है। जिससे साधना कैसे हो ?वास्तविक इन पाटियोंका प्रत्येक शब्द का ठीक अर्थ समझकर ११

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