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साधु भाई! समय सुधारस पीजे, साधु भाई! समय सुधारस पीजे, अन्तर आतम हीरो परखी, सुखकर तेह ग्रहीजे. साधु भाई १ शुद्ध स्वरूपे रूपारूपी, नित्यानित्य विलासी, पर पुद्गलथी न्यारो वर्ते, लोकालोक प्रकाशी. साधु भाई २ अन्तर अखय खजानो भारी, वर्ते छे सुखकारी, लक्ष्य लगावी लेवो भाई, समजो नर ने नारी. साधु भाई ३ वेदक आतम पण नही वक्ता, अनुभव अन्तरधारो, खेले आतम आप स्वभावे, तो होवे भव पारो. साधु भाई ४ जो समजे तो समजी लेने, मळीयुं उत्तम टाणुं, जेवू उत्तम षट्रस खाणुं, तेवू शिव वहु आपुं. साधु भाई ५ निजपद वासी तुं अविनाशी, छे तुं गुणगण राशी, बुद्धिसागर आतम ध्याने, झगमग ज्योति विलासी.साधु भाई ६
साधु भाई! ध्यान समाधि वरीजे साधु भाई! ध्यान समाधि वरीजे, आतम समाधि पाकर प्रेमे, भव जलधि कु तरीजे. साधु १ असंख्य प्रदेशी आपो आपे, स्थिर उपयोगे भासे, स्वप्नदशा सम संसारे तब मनडु कबहु न वासे. साधु भाई २ बाहिर वासकु त्यागी अन्तर, शुद्ध वासमां वसीए,
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