Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal

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Page 170
________________ चरित्रम श्री सदैववत्स क्षिप्तास्तेनाथ गाया मेकोत्तरशतस्त्रियः / / अंगीकृतं तपो राज्ञा परमं च ततः स्वयम् // 63 // | कमलस्य ततः पित्रा विज्ञाते तत्स्वरूपके // कपाललिखितं तच्च निर्णीयोक्तं स्वबुद्धितः // 64 // ka ललाटलिखिता पुंसां नैव दैवी लिपिवृथा // एकोत्तरशतं हन्तेत्येषा शिर्षास्थिगा यथा // 65 // K एकत्कथानक श्रुत्वा राजा प्राह महामतिः // नूनं स्त्रीणां चरित्राणि चैवंविधानि सत्यपि // 66 // कुलमप्यवमन्यन्ते मन्यन्ते ह्यधमाधमम् // विचारयंति नाकृत्यं परपुंसि रताः स्त्रियः // 67 // अथ विप्रो नृपादेशाद् द्वितीयप्रहरस्थितः // वक्ति राजन् समानाय्य सुतां ते प्रच्छ मत्कृतिम् // 18 // ततो राज्ञा समाहृय पृष्टा निजसुताथ सा // पुरुषमपि तं दृष्ट्वा प्राह स्वपितरं प्रति // 69 // जीवितव्यस्य दातैष पुरुषो मम हे पितः // राज्ञा पृष्टं कथं पुत्रि तदोक्तं सर्वकर्म तत् // 70 // स्वप्रतीत्यै ततो राज्ञा गुहायां निजसेवकाः // प्रेषिता स्तत्र दृष्टस्तै द्विखंडीकृत राक्षसः // 71 // तैरागत्य यथा दृष्टं प्रोक्तं भूपतयेऽथ तत् // तदातीव प्रसन्नोऽसौ राजा प्राह जनान् प्रति // 72 // रात्रौ पुरं प्रतोली न भयेनोद्घाटिता दणम् // लोकाश्चैकाकिनो नैव निःसरंति पुरावहिः // 73 // | राक्षसस्य भयं तच्च ह्यनेनैव विनाशितम् // नूनमेतेन लोकाना मुपकारः कृतो महान् // 74 //

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