Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal
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________________ श्री सदैववत्स 93 तत्रत्यै र्धियमाणाश्च देवीबल्यर्थकं वयम् // अवागता महाकष्टात् पलाय्य पादशक्तितः॥८॥ एतच्छ्रुत्वा महाकष्टं स च महादयापरः // विलोकनाय तत्रागात् कुमारो गुणसुंदरः / / ततोऽसौ तत्र तद्देव्या मंदिरे याति सत्वरम् // तावत्तेन नरो दृष्टो वैदेशिको धृतो जनैः // 89 // कारयित्वा महास्नानं सुवस्त्रपरिवेष्टितः // कणवीरस्य मालाभिः कण्ठे शुशोभितः कृतः॥१०॥ कम्पमानशरीरश्च भयादीनमुखोऽपि सः // मंगलतूर्यघोषण महताडंबरेण च // 11 // जनैरानीयमानोऽसौ वर्धापनपुरःसरम // विलापकारकश्चैवं करुणस्वरतः पथि // 12 // चिंतयति कुमारोऽसौ दृष्ट्वा तं दुःखिनं नरम् // धिगेतान् पापिनश्चौरान् नंत्यल्पार्थे महानरान् // 13 // Kad किंच धिगस्तु देवत्वं तस्यापि यस्य केवलम् // क्रीडामात्रकृते जीवशतघातो विधीयते // 94 // Ka सवेविअ सुहकामी सवेविश्व दुःखभीरूणो जीवा // सवेवि जीविअपिया सवे मरणाउ बीहति // 15 // इक्कस्स कएनिअजीवियस्स बहुआउ // जीवकोडीउ दुःखे ढवंति ज केवि ताणकि सासअंजीअम्॥ यदि चास्य वराकस्य नरस्य पश्यतो मम // प्राणा एव प्रयास्यंति तदा का मे कृपालुता // 16 // तेन सर्वप्रकारेण रक्षणीयोऽस्त्ययं मया // विचार्य हृदये चैवं तेनोक्तं तान् प्रति द्रुतम् // 17 //

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