Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal

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Page 182
________________ श्री सदैववत्स राजाथ तादृशं श्रुत्वा स्वरूपं हृदये पितुः // आहत इव वज्रेण चिंतयत्यतिपीडितः // 1 // अहो दुर्मत्रिणस्तस्य दौरात्म्यं कीदृशं यतः // तत्प्रपंचेन मे देशान्निष्कासनं पुराऽभवत् // 2 // पितुश्चेदृगवस्थाऽभूदत उक्तं महात्मभिः॥ दुर्मत्रिणस्सदा त्याज्या राज्ञा राज्यविवृद्धये // 3 // - मृतिं सुतस्य भार्याया मानभ्रंशं धनदयम् // मित्रं व्यसनसंतप्तं देशभंगं कुलक्षयम् // 4 // परहस्तगतं राज्यं स्वस्थानं परपीडितम् // धन्यास्ते ये न पश्यन्ति बाल्ये मातृवियोजनम् // 5 // युग्मम् / तत्र शीघ्रमतो गत्वा वैरीन् जित्वा महाबलान् // पूर्ववन् मम पुर्यास्तु स्वास्थ्यं सम्पादयाम्यहम्॥६॥ विचार्यैवं नृपो यावद्विधाय सैन्यमेलनम् // इच्छति च प्रयाणाय तावत्पुत्रौ समागतौ // 7 // जनक मुत्सुकौ भूत्वा विज्ञपयांबभूवतुः // मोचयिष्याव आवां वै तत्र गत्वा पितामहम् // 8 // | तिष्ठतात्रैव यूयं तु राजा प्राहाथ हे सुतौ // युवां स्थश्च लघीयांसौ रणकर्मण्यदक्षिणौ // 9 // भवतोऽतः कथं तत्र प्रेषणं च करोम्यहम् // पित्रेत्युक्तावपि स्नेहाजातावाग्रहतत्परौ // 10 // | खलीनविगलबालाप्लवेन फेनिलं बहु // जात्यतुरंगसैन्येन जलपूरं वितन्वता // 11 // पर्यवसाप्य तातं तौ संवृतौ निर्गतौ पुरात् // वत्सेन चिंतितं पश्चात् तेन कतिपयैर्दिनैः // 12 //

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