Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal
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________________ चरित्रम् 86 ही सदैववत्स राजोवाचाथ हे श्रेष्ठिनेते च पुरुषोत्तमाः / न संति दांभिका एवंविधसत्याभिज्ञानतः // 34 // अत श्चैतैः कृतं सर्व सत्यं मन्यामहे वयम् // अतो यन्मार्गयंत्येते तत् त्वमद्यैव देहि भोः // 35 // श्रेष्ठी प्रोवाच हे देव सत्यमेव भवद्वचः // अद्यैकत्र करिष्यामि सर्व द्रव्य महं परम् // 36 // मार्गयाम्यहमेतेभ्यो दिनं युष्मदनुज्ञया // अद्यतनं च युक्त्यैव मुदित्वा मागितं ततः // 37 // मध्यस्थं तन्नृपं कृत्वा केवलं तेन तदिनम् // मार्गितं तदिनं तेभ्यस्तस्मै राज्ञाऽपि दापितम् // 38 // नरेषु नापितो धूर्तः कार्पटिश्च तपस्विषु // चतुष्पदेषु गोमायु वणिग् वाणिज्यकारिषु // 39 // द्वितीयेऽथ दिने श्रेष्ठी गृहमध्ये स्वयं पुनः // गत्वा विलोकयामास यदद्यास्ति पिता मम // 40 // Ke पूर्ववत् पुनरागत्य सुप्तोऽस्ति वा न मे पिता // परं तेन पुनस्तत्र दृष्टो न पुनरागतः // 41 // KE अथ स्तौति कुमारादीन् हृष्टीचत्तो वणिग्वरः॥नून मन्यै रसाध्यं यद् युष्माभिःकृतमस्ति तत्॥४२॥ व मार्गे कर्दमदुस्तरे जलभृते गर्ताशतै राकुले, खिन्ने शाकटिके भरेऽतिविषमे दूरं गते रोधसि // शब्देनैतदहं ब्रवीभि महता कृत्वोच्छ्रितां तर्जनी=मीक्षेविषये विहाय धवलं वोढुं भरं कःक्षमः // 43 // कुमार प्रतिभासि त्वं धौरेयधवलो यथा // उक्त्वैवं श्रेष्ठिना तेभ्यो देयं दत्तं प्रहर्षतः // 44 //

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